नवोदय और केंद्रीय विद्यालयों के माध्यमिक स्तर के विद्यार्थियों के दुःचिन्ता एवं शैक्षिक उपलब्धि का तुलनात्मक अध्ययन
Abstract
शिक्षा मानव का मूलभूत साधन है। जिसने मनुष्य के जीवन को काफी परिवर्तन किया है। एक समय था जब नवजात शिशु असहाय तथा असामाजिक होता है। वह न बोलना जानता है न चलना-फिरना। उसका न कोई मित्र होता है और न कोई शत्रु। यही नहीं, उसे समाज में रीति-रिवाजों तथा परम्पराओं का ज्ञान नहीं होता है और न ही उसमें किसी आदर्श तथा मूल्य को प्राप्त करने की जिज्ञासा पाई जाती है। परन्तु जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है, वैसे-वैसे उस पर शिक्षा के औपचारिक और अनौपचारिक साधनों का प्रभाव पड़ता जाता है। इस प्रभाव के कारण उसका जहाँ एक ओर शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक विकास होता जाता है, वहंी दूसरी ओर उसमें सामाजिक भावना भी विकसित होती जाती है।